Jeene ke Kayee Thikaane

मैं भी एक रेस का घोड़ा था,मतवाला हाथी के जैसा,
चीते सी फुर्ती मुझमें थी,थी तेज नजर बाजों जैसा,
पर दिल कोमल था पत्तों सा,जिसके आगे मैं हार गया,
एक मस्त हवा की झोंका पर,तन-मन अपना मैं वार गया |
फिर रेस हमारा बिखर गया,मतवाले हम दिल खो बैठे,
फिर छोड़ के डाली साथ उड़े,खुद का सुधबुध सब खो बैठे,
वह चंचल पवन की झोंका सी,कुछ दूर चली फिर ठहर गई,
ख़्वाबों का एक बवंडर था,पल भर में सबकुछ बिखर गयी,
जब आंख खुली सुनसान डगर,मानो ये दुनिया ठहर गया,
मैं था गुलशन का शहजादा,वो क्या ठहरी सब ठहर गया|
वो जश्न मनाती दुनियाँ में,में शोक में डूबा एक राही,
मैं भूल गया था जीवन में,सब मतलब के ही हैं साथी,
मरने के अगर बहाने सौ,जीने के लाख ठिखाने हैं,
सागर उस पार अगर जाना,दुनियाँ में और भी नावें हैं,
वो आज भटकती नदियों में,मैं सागर पार बिंहशता हूँ,
सच कई ठिकाने जीने के,मैं कल से ज्यादा हँसता हूँ,
वह दूर से देख तरसती है पदचिन्ह जिसे मैं छोड़ा हूँ,
मैं कल भी रेस का घोड़ा था,मैं आज भी रेस का घोडा हूँ|

!!! मधुसूदन !!!

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