LAKSHYA/लक्ष्य

बच्चे ही दौड़ते,बुजुर्ग नही दौड़ते,
कभी गौर करना तब,जब बच्चों के पाँव
धरती पर पड़ते।
बीज शांत तबतक,जबतक गर्भ में होते,
अंकुरण का देर,फिर तो पल-पल ही बढ़ते,
अंकुर को वृक्ष होते देर नही लगते,
बच्चे ही दौड़ते,बुजुर्ग नही दौड़ते।
छोड़ दो बहलाना खुद को,
किस बाग को,सजाना सोचो,
वृक्ष तो स्थिर,तेरे पाँव,
किधर जाना सोचो,
ख्वाब गर बदले,मंजिल बदल जाएगी,
पलभर की चूक,रण-निर्णय बदल जाएगी,
भगीरथ प्रयास पर,ध्रुव के पुकार पर,
गुरुभक्त आरुणि के भक्ति प्रवाह पर,
एकलव्य का एकाग्र,पाणिनि का जिद्द,प्रयास,
एक लक्ष्य साध जो हैं राह नित्य चलते,
वही पौध-वृक्ष बन प्रसून सा महकते,
बच्चे ही दौड़ते,बुजुर्ग नही दौड़ते,
बच्चे ही दौड़ते,बुजुर्ग नही दौड़ते।
!!!मधुसूदन!!!

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