Unexpected
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क्यूँ पिंजर बन्धन खोल दिया–?
थी एक कटोरी छोटी सी,
कुछ उसमे दाना-पानी था,
लोहे की इसी सलाखों के,
अंदर ही जहां हमारा था,
माना नफरत के काबिल तुम,
फिर भी अपना हम बोल दिए,
अपनी दुनियां को भूल इसी,
घर से ही नाता जोड़ लिए,
क्या हमसे तेरा स्वार्थ खतम,
क्यों हमसे नाता तोड़ लिया,
कुछ हमे बता ऐ दिलवाले,
क्यूँ पिंजर बन्धन खोल दिया–?
उन्मुक्त गगन की पंछी मैं,
बहते पानी सी दुनियाँ थी,
धरती अपनी,अम्बर अपना,
अपनी ये दुनियाँ सारी थी,
फिर कैद किए तुम पिंजड़े में,
अपनों से मुझको दूर किया,
अपनी खुशियों के लिए हमें,
सब मेरी खुशियां छीन लिया,
अब ऐसी कौन खुशी पाया,
किससे तुम नाता जोड़ लिया,
कुछ हमे बता ऐ दिलवाले,
क्यूँ पिंजर बन्धन खोल दिया–?
अब देख हमारे पंखों को,
सब पिंजड़े में ही टूट गए,
कुछ शेष बचे हैं पंख मगर,
उड़ना ही हम भूल गए,
क्यों खोल दिए अब पिंजर को,
कर दुनियाँ को बर्बाद मेरे,
क्यों बन बैठा दिलवाला तुम,
कर दोस्त हीन संसार मेरे,
तुम अगर किया आजाद हमें,
बिन पंख नही उड़ पाएंगे,
धरती पर रहनेवाले सब,
मिट्टी में हमे मिलाएंगे,
ऐ दुष्ट बता क्या ख्वाब सजे,
क्यूँ बन्दी गृह को खोल दिया,
क्या नशा तुम्हारी आँखों में,
क्यूँ पिंजर बन्धन खोल दिया–?
क्या नशा तुम्हारी आँखों में,
क्यूँ पिंजर बन्धन खोल दिया–?
!!! मधुसूदन !!!
पंछी हो या इंसान कभी – कभी बंधन में बंधे रहने का एहसास आजादी के एहसास से कहीं ज्यादा प्यारा और खूबसूरत होता है।
ये बंधन ही तो होते है जो हमे किसी के लिये खास होने का किसी के अपने होने का एहसास कराते है।
बिल्कुल सही कहा। हम भी बंधकर रहना चाहते हैं, मगर प्रेम पर जब स्वार्थ हावी हो जाये और कोई आजाद करने लगे तो दर्द होता है और बहुत ज्यादा होता है।
जैसे तलाक !
पत्नी या पति के रहते किसी और से आसक्ति और विवाद फिर आजादी!
Emotion of this poem touches the heart👌👌
Thank you very much for your appreciations.
बहुत सच्ची और खूबसूरत अभिव्यक्ति है।
Sukriya apka…apko achchha laga aur apne sarahaa.
ati khubsurat
Sukriya apka…
😊
पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय. बहुत सुंदर.
sukriya apka
बहुत ही अच्छा और खूबसूरती से अभिव्यक्ति की है। 👌👏
dhanyawad paka …hausla badhane ke liye…
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद आपका ।
Bahot achhi Kavita..
Dhanyawad apka
🙏🙏
अच्छा हैं………..
Dhanyawad apka..
क्या बात है मधुसूदन जी, जोरदार 😀
Ha.. ha ..ha……..main pahle hi bol chuka hun kisi ke lekh se kuchh mile naa mile aapka lekh hampar gahra chhap chhod jaataa hai….bibas kar dete hain aap kuchh bhi likhne ko……hamne achchha likha mujhe nahi pataa.sukriya aapko achchha laga aur saraha…
अब मैं क्या बोलूँ 🙏🙏🙏
🙏🙏🙏