Saath-Saath

कितनी हसीन दुनियाँ मेरी, खुशनसीब हम अगर साथ हो,
गर साथ हो जमीं पे नहीं रहते हैं कदम अगर साथ हो।

वे आग की दरिया हैं,तो हम बर्फ का गोला,
तिल,तिल पिघल रहे जलाता आग का शोला,
हैं आग की मलिका जलाना उनका काम है,
हम बर्फ पिघलकर बुझाना मेरा काम है,
है ग्रीष्म के मौसम पे चढ़ा शीत का मौसम
पानी बनाते बर्फ को वे, लौ बुझाते हम अगर साथ हो,
गर साथ हो जमीं पर नहीं रहते हैं कदम अगर साथ हो।

वे पेड़ की डाली में खिली पत्तों के जैसे
कितनी थी हसीं,शांत सजी डाली में ऐंठे,
हम बन पवन करीब से उनको जगा रहे,
मद्धिम सी अपनी चाल से उनको हिला रहे,
हम शांत वे बेचैन,हम चले तो चल दिए,
डाली से सारे रिश्ते तोड़ साथ हो लिए,
वे उड़ गए गगन में पवन बन के चले हम अगर साथ हो,
गर साथ हो जमीं पर नहीं रहते हैं कदम अगर साथ हो।

है प्रेम अगर स्वर्ग जमीं स्वर्ग है गगन,
ये रेत के टीले भी चमन से नहीं हैं कम,
फूलों से सजी सेज हो या कांटो से भरी,
टूटी हो खाट पास लगे झील में हैं हम अगर साथ हो,
गर साथ हो जमीं पे नहीं रहते हैं कदम अगर साथ हो।

!!! मधुसूदन !!!

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