Purane din
क्यों गुमशुम हो आओ,उस दौर की बाते करते हैं,
अविकसित ही सही उस गुलशन की सैर करते हैं।
इंटरनेट,मोबाइल से हम बिलकुल अनजान थे,
टी.वी. और रेडिओ भी चाँद के सामान थे,
सफर में गाडी बामुश्किल मिला करती थी,
फिर भी थी मस्ती तू साथ रहा करती थी|
आज भी वो याद है तेरा मुश्कुराना,
दफ्तर से आऊं तब दरवाजे पर तुम्हें पाना,
घडी के बगैर कैसे हाल जान जाती थी,
दुःख सुख मन की बात जान जाती थी,
खाने की चाहत बिना बोले ही जानकर,
खीर की कटोरी कैसे पास लेकर आती थी,
गाते हम गीत आँखे तेरी शर्म से झुक जाते,
लाईक समझ उसे पुलकित मन हो जाते,
धत्त तेरी कहकर चेहरे को ढकती जब,
कमेंट्स समझ के उसे अंग अंग खिल जाते,
मुझे भी है याद, लाल साड़ी लेकर आना,
अरमान सब हमारी बिना बोले जान जाना,
आज भी वो प्रेम हम याद बहुत करते हैं,
अविकसित ही सही उस गुलशन की सैर करते हैं,
बिकसित है आज देख प्रेम को तरसते हैं,
पास पास बैठे मगर तन्हां सा रहते हैं,
बहु-बेटा साथ कैसे व्हाट्सऐप करते हैं,
बातों का स्वाद कहाँ लाईक,कमेंट्स करते हैं।
पोते भी गेम में पोती भी गेम में ,
कहने को प्रेम मगर प्रेम लुटा गेम में,
सुनी है गोद यूँ तन्हां हम बैठे हैं,
घर में परिवार मगर प्यार को तरसते हैं,
अच्छे थे अविकसित छोडो चाय हम बनाते हैं,
मेरी फिर ये चाहत आप कैसे जान जाते हैं,
चश्मा तो बढ़ाओ चाय अभी लाकर रखते हैं,
अविकसित ही सही उस गुलशन की सैर करते हैं।
!!! मधुसूदन !!!
पुराना जमाना कितना बढ़िया लिखा है
हौसला बढ़ाते आपके शब्द,कोटि कोटि आभार आपका।
Budhape ke akelepan ko bde achhe dhang SE pesh Kia Hai
Bhut achhe
Dhanyawaad aapne pasand kiya.
It’s so mesmerising. ..true fact
Thank you very much…..
बेहतरी भाव सिरजी 😊😊
धन्यवाद आपका।
बहुत ही अच्छा। पुराने दिनों की याद दिला दी आपने।
Aako achchha lagaa bhut bahut dhanyawaad …
bahut khub madhusudan ji apne atit ki besumar yaadon ko samet kar yaha uker diya
सुक्रिया दानिश जी।
Purane din ki baat hi Kuch aur thi! The feeling of love was so genuine and real. You brought out the comparison very well in your poem Madhusudan! As always a beautiful one!!
I glad to thank you for your appreciation ….
lajawab
Thank you very much Naren ji….