TAHKHAANAA/तहख़ाना
जब भी हम उनसे मिलते थे,
नित्य नए परतें खुलते थे,
उन परतों में उलझ गए दिल जिसका हुआ दीवाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
झील सी गहरी आँखें,
जितना देखूँ डूबता जाऊँ,
केश घने जैसे घन में अमीकर
वैसे खो जाऊँ,
मदहोशी क्या मैं बतलाऊँ,
पाँव जमीं पर मैं ना पाऊँ,
हूर परी,तिल होठों पर, कातिल उनका मुस्काना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
हम जब पहली बार मिले,
मिलते ही सुदबुध खो बैठे,
हम तरुवर की डाली,
वे संग अमरलता सी हो बैठे,
नर्म-नर्म मखमल के घेरे,
गर्म-गर्म साँसों के फेरे,
दिल के झंकृत तार सभी,खुशबू से भरा जमाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
एक था वन का फूल
लदी थी फूलों से हर डाली,
एक छलिये का दिल आ बैठा,
पाया चाहरदीवारी,
कुछ दिन अपना दिल बहलाया,
फिर नजरों से दूर हटाया,
मैं ही वो वनफूल जहाँ गमलों का भरा खजाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
यादों की फेहरिस्त बड़ी अब,
मुश्किल है मुस्काना,
जिस दरिया में प्रेम भरा वह
गम का बना खजाना,
वे थे एक हवा के झोंके,
समझ सके ना उनके धोखे,
मेरा दिल जिनका घर उनका,और भी कई ठिकाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
!!!मधुसूदन!!!
सुंदर चित्रण।
धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।
आपका लेखन आकर्षित करता है पाठक को।
आप बेहतरीन कविता लेखक है सर👍💐
बेहतरीन आप बना रहे हैं। और हाँ कभी कभी अपने आप लिखा जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
बहुत रहस्यमयी तहख़ाना होता है द़िल।तक़दीर अच्छी थी आपकी कि उस तहख़ाने ने मुहब्बत के राज़ बता दिये….
क्या बात। ये तकदीर सबके नसीब में नही। धन्यवाद आपका।
Beautiful
Dhanyawad apka.
Thank you very much for your
जब भी हम उनसे मिलते थे,
नित्य नए परतें खुलते थे,
उन परतों में उलझ गए दिल जिसका हुआ दीवाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
झील सी गहरी आँखें,
जितना देखूँ डूबता जाऊँ,
केश घने जैसे घन में अमीकर
वैसे खो जाऊँ,
मदहोशी क्या मैं बतलाऊँ,
पाँव जमीं पर मैं ना पाऊँ,
हूर परी,तिल होठों पर, कातिल उनका मुस्काना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
हम जब पहली बार मिले,
मिलते ही सुदबुध खो बैठे,
हम तरुवर की डाली,
वे संग अमरलता सी हो बैठे,
नर्म-नर्म मखमल के घेरे,
गर्म-गर्म साँसों के फेरे,
दिल के झंकृत तार सभी,खुशबू से भरा जमाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
एक था वन का फूल
लदी थी फूलों से हर डाली,
एक छलिये का दिल आ बैठा,
पाया चाहरदीवारी,
कुछ दिन उसके दिल को भाया,
फिर नजरों से दूर हटाया,
मैं भी उस वनफूल के जैसे,
बिखरा मैं वो भी कुम्हलाया,
वन खुशबू से भरनेवाला,
खुली हवा में रहनेवाला,
प्रीत किया उससे जिसका गमलों से भरा खजाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
यादों की फेहरिस्त बड़ी अब,
मुश्किल है मुस्काना,
जिस दरिया में प्रेम भरा वह
गम का बना खजाना,
वे थे एक हवा के झोंके,
समझ सके ना उनके धोखे,
मेरा दिल जिनका घर उनका और भी कई ठिकाना था,
समझ सके ना उनको,उनका दिल कोई तहख़ाना था।
!!!मधुसूदन!!!
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This is extremely beautiful
Thank you very much for your valuable comments.