Yaaden
मैं हूँ,मैं नहीं भी हूँ,
परन्तु,
तुम ही तुम हो,
मैं जहां भी हूँ।
अजीब हैं येे यादें,
आती है सबकुछ,
डूबा जाती है,
गिरता हूँ,
सम्हलता हूँ,
फिर तेरी यादों की,
दरिया में
उतर जाता हूँ।
गलती हुई है,
नादानी कर बैठा,
कभी निकला नहीं घर से,
तभी तो,
रेगिस्तान को,
समन्दर समझ बैठा,
अब खुद को,
बहुत समझाता हूँ,
तुमसे दूर होने की,
निरंतर,
तरकीब लगाता हूँ,
परंतु,
जब भी पलकें बंद करूँ,
उसी बवंडर में,
खुद को उलझा,
पाता हूँ।
दिल पर लगी निशान,
मिटाना,
आसान नहीं,
सच है तुझे भुलाना भी,
आसान नहीं,
माना कि मेरी यादों पर,
तेरा ही सल्तनत है,
फिर भी,
जीवन में मेरे,
तेरा वापस आना भी,
आसान नहीं,
खुली आंखों में,
तेरी ही,
जालिम सूरत है,
बंद आंखों में,
तेरी ही,
हुकूमत है,
तो लो आंखों को,
बंद करता हूँ,
उसी बवंडर के अधीन,
पुनः खुद को करता हूँ,
जहाँ,
मैं हूँ,मैं नहीं भी हूँ,
परन्तु,
तुम ही तुम हो,
मैं जहां भी हूँ।
!!!Madhusudan!!!
A great tribute to the world of Hindi Poems. Bahuth khub Madhusudan ji, bahuth khub!
आज तो दिलरूबा की याद आ गई सर आपके लेखन पढ़कर आप को गले से लगाने को जी कर रहा है ❤❤🙏🙏
kya baat hai…..likhna safal hua……hausla badhane ke liye bahut bahut dhanyawad….
मन बहुत उदास था पर आज आपकी यह कविता पढ़ कर बहुत खुशी हुई सर….thanks
धन्यवाद आपका मेरी कविता आपको इतनी अच्छी लगी जानकर बहुत खुशी हुई।सुक्रिया आपका।
मैं हूँ,मैं नहीं भी हूँ,
परन्तु,
तुम ही तुम हो…बहुत बढिया
बहुत खूब बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
Sukriya apka apne pasand kiya aur saraahaa…