SANDESH PREM KA

दीप से जलती बाती बोली,
हम भी आ कुछ कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं।

जगह-जगह पर घोर अंधेरा,
छाया है जिन राहों में,
चला बटोही राह पकड़,
आ बिछ जाएं उन राहों में,
अंत हमारा भी निश्चित,
उससे पहले कुछ कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं।।

दीपक-बाती साथ निभाता,
लौ संग तिल-तिल जलता है,
ऐ मानव तुम भी दीपक,
क्यूँ निशदिन तिल-तिल मरता है,
आ नफरत में आग लगा दे,
जात,धर्म का भेद मिटा दे,
होठों पर मुस्कान जिगर में,
दीप प्रेम का आज जला दे,
आ मिल दोनों इस जग को,
फिर जन्नत जैसा कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं।
!!!मधुसूदन!!!

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