SANDESH PREM KA
दीप से जलती बाती बोली,
हम भी आ कुछ कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं।
जगह-जगह पर घोर अंधेरा,
छाया है जिन राहों में,
चला बटोही राह पकड़,
आ बिछ जाएं उन राहों में,
अंत हमारा भी निश्चित,
उससे पहले कुछ कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं।।
दीपक-बाती साथ निभाता,
लौ संग तिल-तिल जलता है,
ऐ मानव तुम भी दीपक,
क्यूँ निशदिन तिल-तिल मरता है,
आ नफरत में आग लगा दे,
जात,धर्म का भेद मिटा दे,
होठों पर मुस्कान जिगर में,
दीप प्रेम का आज जला दे,
आ मिल दोनों इस जग को,
फिर जन्नत जैसा कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं।
!!!मधुसूदन!!!
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Bahut khub likha hai
Sukriya apka..
🙂
Bhut khub sirji
Sukriya apne pasand kiya.
Bahut sunder,
Sukriya apne pasand kiya aur saraaha.
lajvab kvita hai.
sukriya apka aapne pasand kiya aur saraha.
You wrote it really well. …I like this peom it’s awesome. 👍👍
thanks for your appreciation.
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने!!
sukriya apka
वाह , बेहतरीन
dhanyawad apka.
अंत हमारा भी निश्चित,
उससे पहले कुछ कर जाएं,
जबतक साँस हमारे हम,
आ जग को रौशन कर जाएं।।
awsome lines and wonderful poem
thank you very much for your valuable comments.
सुक्रिया मित्र—-सुप्रभात।
सुंदर कविता सुप्रभात के साथ
suprabhat….sukriya apka.