Marham
दिल भी मेरे दर्द भी मेरे,
दिल में गहरे जख्म भी मेरे,
दर्द जिगर का सुनकर भी क्यों,आँख से आंसू ना निकला।
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,दिल कैसा जो ना पिघला।
किश्ती का ऐ बड़ा मुशाफिर,
सागर ना पहचान सका,
आँखों में रहकर भी मेरे,
दिल को ना तू जान सका,
मोम की पुतला जैसी थी मैं,
फूलों से भी कोमल थी,
जिस राहों पर कदम तुम्हारे,
उसी राह की मंजिल थी,
मंजिल की दहलीज से लौटा,प्रेम की मूरत ना देखा,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,दिल कैसा जो ना पिघला।
दास्तान से जिगर भरा है,
कण-कण में बस तू ही तू,
हाथों में तस्वीर तुम्हारी,
ख़्वाबों में बस तू ही तू,
रात अँधेरी,दिन उजियारे
आँख बंद या खुले हमारे,
रोम-रोम,भगवान् की मूरत,में भी प्यारे तू दिखता,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,दिल कैसा जो ना पिघला।
अगर पिघलता दिल तेरा,
सब शिकवे मेरे मिट जाते,
तेरी आँख की एक आँसूं की,
बूंद से सब कुछ मिट जाते,
दास्तान बरसों की पर,
एक बूंद की दरिया काफी थी,
मोम पिघलने की खातिर,
एक जलती तिल्ली काफी थी,
मगर तुम्हारा दिल पत्थर सा,छूकर मुझको ना पिघला,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,दिल कैसा जो ना पिघला।
!!! मधुसूदन !!!
बहुत अच्छी रचना है।
तारीफ करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
bahut khub madhusudan ji bahut umda kavita hai ye
Bahut bahut dhanyawaad aapka pasand karne ke liye….
बहुत सुंदर पंकित्याँ सर.
सुक्रिया आपका।
बहुत सुन्दर👌👌👌👌
सुक्रिया आपका।
बहुत अच्छी रचना….👌👌
सुंदर पंक्तियाँ ….भाव, विचार,शब्द प्रयोग अति उत्तम👌👌👌👍👍😊
सुक्रिया आपको इतने अच्छे कमेंट्स के लिए।
बहुत धन्यवाद …अच्छी रचनाएं पढने व सीखने का सौभाग्य मिल रहा है😊😊
Ye mera saubhagya hai jo aapke jaise log saath hain….Sukriya…
धन्यवाद☺☺
बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्ति की है।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
बहुत सुन्दर सर
सुक्रिया आपका।
👌👌👌👌
Thanks…
Dhanyawaad sir…..
Ati sunder.