ऊँची चाहरदीवारी,जड़े ताले किवाड़जहाँ पग-पग खड़े पहरेदार देखते हैं,कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,झरोखे से खुला आसमान देखते हैं।चुनकर जिसे मन ही मन हमने ऐंठा,सच है वही तख्त पर आज बैठा,फिर क्यों हम खुद को बेहाल देखते हैं,कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,झरोखे से खुला आसमान देखते ...
बंद क्यों ना हो जाए,किवाड़ सब जमाने का,द्वार जिंदगी का कभी खुद से ना लगाना यारों,गिरते दरख़्त कई आँधियों के आने से,बीज हम दरख़्त बन सजेंगे फिर बताना यारों,जंग हर कदम कदम पर जिंदगी में जीत भी,छटेगा अँधेरा दीप खुद से ना बुझाना यारों,द्वार जिंदगी का कभी खुद से ना लगाना ...
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सिकन्दर हार गया,
बादशाह मकदूनिया का था,विश्वविजय अरमान,
झेलम नद के तट पर आकर टूट गया अभिमान,
सिकन्दर हार गया,
हैं कहते जिसे महान,सिकन्दर हार गया।
उत्तर में यूनान अवस्थित,
मकदूनिया एक राज्य,
चला सिकन्दर पूर्व दिशा में,
भारी सेना साज,
थिब्स,मिश्र,इराक ...
मुझसे भी मेरे दिल का खास,हुआ है कोई।मौसम संग बदले सारे ख्वाब,दुआ है कोई।आते वे पास,हम ना होते इस जहान में,एक साथ चाँद कई दिखते आसमान में,उनकी अदाएं,बातें,आँखें,मुस्कुराहटें,अस्त्र विचित्र,ध्वस्त गुरुर की इमारतें,खुले बज्र जैसे दिल के किवाड़,खुदा है कोई?मौसम संग बदले सारे ख्वाब,दुआ ...
मैं धरती तुम गगन हमारे,सूरज,चंदा,चमन हमारे,काया मेरी जान तुम्ही हो,धड़कन मेरे प्राण तुम्ही हो,बेशक नयन हमारे उनमे बस तेरे ही रूप रे पगले,भरी दुपहरी ढूँढ रहा क्यों,इधर-उधर तुम धूप रे पगले।मैं राही तुम सफर हमारे,मंजिल तुम हमसफ़र हमारे,तुम ही मेरे काशी,काबा,तुम चितचोर मेरे,मैं ...
बहुत हुआ अब हमको बाबर जैसा होना चाहिए,
हमें भी गजनी,गोरी सा संहारक होना चाहिए।।
बहुत भले थे खिलजी,लोधी और टीपू सुलतान,
कासिम,तुगलक,मुगलवंश के शासक बड़े महान,
कितने अच्छे कार्य किए कैसे उसको गिनवाऊँ,
उनकी गौरवगाथा को किन शब्दों में दर्शाऊँ,
तोड़ ध्रुव स्तम्भ बनाया ...
देखा दुख ना जीवन में वह सुख की कीमत क्या जाने,
जले पाँव ना धूप में जिनके छाँव की कीमत क्या जाने,
क्या जाने माँ-बाप की कीमत,जिनके सिर पर हाथ सदा,
सिर पर बाप का हाथ नहीं वो कीमत उनका पहचाने।
वैसे तो कई रिश्ते होते अपने इस सारे संसार में,
मगर बाप के रिश्ते का कोई तौल नहीं संसार ...
कहता रहा दिमाग,चाय सेहत के लिए ठीक नही,मगर मुश्किल दिल को समझाना था,मिलने का वक़्त मालूम,फिर भी इंतजार,चाय पीना तो एकमात्र बहाना था,घँटों की मुलाकात,लब चुपचाप,ये नित्य का सिलसिला था,आसान नही था कुछ भी कहना,फिर भी सुनने को आतुर वेऔर लब भी कुछ यूँ हिला था,हम जीवन भर बर्तन धोते ...
हाथों मे सोने का कंगन लिए बाघ,खुद को शाकाहारी बन जाने का ढोंग करता,दुर्योधनी सोच लिए सरहद रौंदने को ततपर पड़ोसीमन में घृणित रोग रखता,दशानन का साधु बन आना,और हर बार तेराछला जाना,आखिर कब तक?आखिर कब तक उस अधर्मी संग धर्म निभाओगे,पाशे का छल,द्रौपदी की चीख,और उबाल लेता धमनियों मेंशोणित ...